आजकल बच्चों की शिक्षा ही सर्वोपरि विषय बन गया है , स्कूल , कॉलेज की फीस और ऑनलाइन क्लासेस बस यही चर्चा है । स्थिति का कोई भी निष्कर्ष निकालकर निर्देश दिए जा रहे है । बहुत से लोग अलग-अलग माध्यम से अपनी राय दे रहे हैं, वैसे भी सलाह देना तो भारतीयों का जन्म सिद्ध अधिकार है , चाहे किसी बात का ज्ञान हो या ना हो सलाह देने में हम सर्वोपरि रहते हैं, क्योंकि यही तो एक चीज है जिस के दाम नहीं लगते ।
स्कूल को शिक्षा मंदिर कहा गया है , आज के परिपेक्ष में क्या यह सही है ? क्या अध्यापकों की मनमानी सही है ? क्या अभिभावकों की मनमानी सही है?क्या सरकारों का हस्तक्षेप करना जरूरी नहीं ? क्या शिक्षा को एक पैसा कमाने का जरिया बनाना सही है ?
आप कहेंगे ऐसा तो सदियों से चला रहा है , परंतु आज के इस दौर में यह तथाकथित शिक्षा मंदिर सिर्फ अपने फायदे के बारे में सोच रहे हैं । यदि यह कुछ माह की फीस नहीं लेंगे तो क्या यह संस्थान बंद हो जाएंगे ? इतने सालों से आप इतना पैसा कमा रहे हैं अगर आप निशुल्क शिक्षा प्रदान करेंगे तो क्या आपका ज्ञान खत्म हो जाएगा ? समय की मांग के अनुसार अगर अभिभावकों पर अतिरिक्त बोझ ना डालकर बच्चों की पढ़ाई अपने ही स्कूल के कोष ( जो कि अभिभावकों द्वारा ही लिया जाता है )से करवा देंगे तो क्या भूचाल आ जाएगा ? किसी को भी परवाह है बच्चों की ? अभिभावकों पर भी यही दबाव रहता है कि इतना पैसा खर्च कर रहे हैं तो बच्चा हमारी मर्जी से पढ़ें कुछ बने , क्या यह गलत नहीं ?
यह सब जिनके लिए किया जा रहा है क्या किसी ने उन बच्चों की राय , इच्छा और खुशी जानने की कोशिश की?आज भारतीय बच्चों पर पढ़ाई का इतना बोझ है परिवार की इतनी अपेक्षाएं हैं कि वह कई बार गलत पथ पर निकल जाते हैं , कुछ मानसिक दबाव झेल लेते हैं और कुछ अपनी जीवन लीला ही समाप्त करना सरल समझते हैं, क्या उसमें हमारा कसूर नहीं ? कहा जाता है,
“बच्चे भविष्य की नींव है”
परंतु हम उन्हीं के साथ खिलवाड़ करते हैं। अभिभावक अपने सपने बच्चों पर थोपते हैं , लोगों को दिखाने के लिए बच्चों को डॉक्टर और इंजीनियर बनाया जाता है , बच्चे का मन अगर कलम पकड़ने का और लेखन करने का है तो वह छीन कर उसे स्टैथोस्कोप थमाया जाता है । अध्यापक भी बच्चों पर यही दबाव बनाते हैं कि अच्छे नंबर नहीं लाओगे तो कुछ नहीं कर पाओगे । प्रत्येक बच्चा क्या एक समान होता है ?
आज भारतीय बच्चे विदेशों में जाकर पढ़ना क्यों चाहते हैं?
वहां पढ़ाई का अतिरिक्त बोझ नहीं है, बच्चों की इच्छाओं के अनुरूप पाठ्यक्रम बनाए जाते हैं , केवल चार पांच विषय बच्चों की रुचि के अनुसार ही पढ़ाए जाते हैं , पढ़ाई को थोपा नहीं जाता। शिक्षा से मित्रता सिखाई जाती है ।
यूं तो हम काफी आधुनिक हो गए हैं, हमें पाश्चात्य देशों से काफी कुछ अपनाया परंतु अपनी मर्जी के मुताबिक। वहां का खाना, व्यंजन , पहनावा, कार्यप्रणाली, प्रौद्योगिकी।
परंतु हम अत्यावश्यक बात अपनाना तो भूल ही गए।
वह क्या है?
वह है हमारे देश के बच्चों के भविष्य एवं शिक्षा के पथ पर उठाए गए कदम । यदि हम अपनी संतानों का उज्जवल भविष्य चाहते हैं तो आज एक नई कार्यप्रणाली की आवश्यकता है , अभिभावकों और अध्यापकों को एकजुट होकर अपने बच्चों के लिए कुछ निर्णय लेने होंगे, नूतन विषय लाने होंगे, पढ़ाई को बोझ ना बनाकर मनोरंजक बनाना होगा।
जहां कुछ बच्चे आज अपनी रुचि को अपना कर आगे बढ़ रहे हैं जैसे कि कुछ गायकी और लेखन कर रहे हैं, कुछ यूट्यूबर और ब्लागर हैं , परंतु 80% बच्चे आज भी अपने माता-पिता और समाज की अपेक्षाओं की बलि चढ़ अपनी इच्छाओं के विपरीत कार्य कर रहे हैं। आज आवश्यकता है सब को एकजुट होकर बच्चों का भविष्य संवारने की । याद रहे बच्चों को केवल साथ की आवश्यकता होती है रास्ता वह खुद ही ढूंढ लेते हैं, उन्हें केवल विश्वास की आवश्यकता है मंजिल वह स्वयं ही प्राप्त कर लेते हैं । उनकी चंचलता और निश्चलता को सजीव रखने के लिए उनका मार्गदर्शन करें, उनकी इच्छाओं और भावनाओं का सम्मान करें। अपनी जीवन भर की इस पूंजी को बिखरने ना दें ।
आजकल की शिक्षा का यही हाल है
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🙏
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Nice
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😊😊
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sahi baat h bilkul
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,🙏🙏
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Nice
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😊
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Well written
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Thanks
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So true
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🥰🥰
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