
सोच के दायरे कम होते जा रहे हैं , ऐसी घटनाएं आसपास घट जाती है कि इंसान की सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है । हाथरस में घटी उस भयावह घटना ने मेरे हृदय को झकझोर दिया । कितने ही सालों से हम यह राग अलापते आ रहे हैं की बेटियों की सुरक्षा कीजिए बेटियों को सम्मान दीजिए परंतु कुछ विकृत मानसिकता वाले लोग यह समझ ही नहीं पाते , ऐसे लोग उन्नत होते हुए देश को पीछे की ओर धकेल देते और ऐसा धकेलते हैं की उठ के खड़े होने में भी बहुत समय लग जाता है । जिस देश की बच्चियां और नारियां सुरक्षित नहीं है वह देश कैसे विकसित हो सकता है ? कितने ही कानून बनाए गए इस शोषण को रोकने के लिए परंतु उसी कानून को ताक पर रखकर यह अपराधी उसकी धज्जियां उड़ाने पर आमादा है केवल क्षण भर के प्रमाद के लिए । क्या वासना का कीड़ा इतना बड़ा हो जाता है कि किसी की जिंदगी की कोई अहमियत नहीं यहां तक की अपनी जिंदगी अपने परिवार की इज्जत की भी कोई परवाह नहीं , यह कैसी मानसिकता है ? कैसे पार पा पाएंगे हम इस घिनौनी मानसिकता से ? केवल लेख और कविताएं लिखने से यह मानसिकता नहीं बदलेगी , न ही जागरुकता आएगी और न ही सरकार हिलेगी क्योंकि लेख और कविताएं पढ़कर क्षण भर के लिए तो आप आक्रोश से भर उठते हैं परंतु कुछ समय बाद फिर सामान्य रूप से जीवन जीना आरंभ कर देते हैं । यह सोचने लगते हैं कि यह सब तो चलता ही रहता है हम क्या करें । क्या हम तब कदम उठाएंगे जब हमारे किसी अपने के साथ ऐसा होगा ? इंतजार करें क्या तब तक ? किसी ने सच ही कहा है ,
” जिस तन लागे वो तन जाने “
जब तक खुद पर नहीं घटती इंसान दूसरे का दर्द समझ नहीं पाता , जब तक खुद को ठोकर नहीं लगती तब तक चल नहीं पाता । क्या उस ठोकर का इंतजार करना सही है ?
सब तरफ शून्य से भरा अंधकार है । रोशनी दिखे तो कहां से दिखे ? जब संसार को आगे बढ़ाने वाली जननी ही सुरक्षित नहीं तो कैसा विकास ? क्या इस समाज का सपना देखा था हमारे पूर्वजों ने जहां एक स्त्री खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करती ? क्या इसी समाज को व्यवस्थित करने के लिए बलिदान दिए गए ? यह समाज स्त्री को पूज तो सकता है परंतु किसी स्त्री को सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकता । क्या इसी आजादी को पाने के लिए इतने लोग शहीद हुए ? पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे और अब हम गुलाम हैं अपनी सोच के जो कहती है कि जो हो रहा है होने दो हमें क्या करना । यह सब कैसे खत्म होगा ? कौन समझाएगा कि क्या सही है क्या गलत है ? क्या होता जा रहा है हमारे समाज को ? आगे बढ़ने के लिए अपने मूल्य और उसूल सब पीछे छोड़ते जा रहे हैं । कुछ बुद्धिजीवी वर्ग यह तर्क देते हैं कि यह तो अनादि काल से चला आ रहा है , हम इसमें क्या कर सकते हैं ? परंतु मैं उन महानुभावों से यह कहना चाहूंगी कि चाहे औरतों पर शोषण अनादि काल से चलता आ रहा है परंतु उस काल में भी औरतों पर शोषण करने वाले को दंड देने का प्रावधान था । महाभारत का युद्ध हो या राम – रावण युद्ध , हर युग में स्त्री का अपमान करने वाले को मृत्यु दंड दिया गया है । आज की कानून व्यवस्था पर यही तो प्रश्न चिन्ह है कि दूसरे देशों की तरह भारतवर्ष में इस अपराध के लिए मृत्युदंड क्यों नहीं है ? अपराधी जानता है यदि मैं पकड़ा भी जाऊंगा तो क्या होगा ज्यादा से ज्यादा कुछ सालों की सजा या जुर्माना इसलिए वह बेखौफ होकर इस कुकृत्य को अंजाम देता है । न जाने और कितनी बालिकाओं और स्त्रियों की बलि देनी चढ़ेगी इस बलात्कार रूपी राक्षस के आगे ? उनकी निर्मम हत्या के बाद कैंडल मार्च और प्रदर्शन करने का क्या औचित्य ? अगर कुछ करना है तो समय रहते ही करना होगा ।
समाज का निर्माण मनुष्य ही करता है और हमें ही ऐसे समाज का निर्माण करना होगा जहां हर स्त्री को सुरक्षा का आभास हो । भगवान ना करे आपके और हमारे परिवार में किसी अपने के साथ ऐसा हो , उसके लिए हमें आज ही इस वीभत्स अपराध को करने वाले व्यक्तियों की हिम्मत को तोड़ना पड़ेगा और यह केवल तब संभव है जब हम केवल प्रशासन के सहारे न बैठ खुद भी सजग हों । जन्म के बाद बेटी और बेटे के बीच भेदभाव ना करके समान परवरिश देना भी एक आवश्यक कदम होगा , बेटों में बचपन से ही संस्कार डाले जाएं कि स्त्री पुरुष के समान है और उसकी इज्जत करना धर्म है , वह केवल भोग की वस्तु नहीं , इसी सोच के साथ अपने आसपास के लोगों को जागरूक करना होगा फिर चाहे वह किसी भी वर्ग , धर्म , ग्राम अथवा शहर के हों । यदि समस्त भारतवासी एकजुट होकर यह बीड़ा उठाएं तो किसी में इतनी ताकत नहीं जो इस बदलाव की आंधी को रोक पाए । समाज का निर्माण मनुष्य ही करता है और हमें ऐसे समाज का निर्माण करना होगा जहां हर स्त्री को सुरक्षा का आभास हो । स्त्री और पुरुष को समान दर्जा मिले । यदि ऐसा हो गया तो वह समय दूर नहीं जब हर स्त्री का सम्मान होगा । तभी सही अर्थों में भारत देश पूर्णत: विकास के पथ पर चल पाएगा ।
क्या ऐसा हो पाएगा ?

हमारे देश की आधी आबादी इस भरम में शिकारी हो गयी है की स्त्री देह बहुत स्वादिष्ट होता है 😡😡😡
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मार्मिक😞 रोंगटे खड़े हो गए मेरे, सही कहा आपने इस पर कड़ा कानून बनना चाहिए।
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🙏🙏
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Sach m
We need a strong law against it
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👍
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