
कुछ सालों पहले क्या कभी हमने ” मतलब की दोस्ती ” जैसा शब्द सुना था ? यह आधुनिक समाज की देन है । लोग हर रिश्ते के मूल आधार को पीछे छोड़ते आ रहे हैं फिर चाहे वह कोई पारिवारिक रिश्ता हो या दोस्ती का । वह जमाना और था जब ” सुदामा और श्रीकृष्ण ” जैसे मित्र हुआ करते थे ।

दोस्ती एक आत्मिक रिश्ता हुआ करता था परंतु आज लोग व्यवहारिक रिश्ते बनाना पसंद करते हैं । यह तो हम कब से सुनते आ रहे हैं कि एक शिशु अपने साथ काफी रिश्ते लेकर जन्म लेता है परंतु मित्रता ही केवल एक ऐसा रिश्ता है जो वह स्वयं बनाता है । दोस्त हर आयु में बदलते जाते हैं परंतु वह लोग भाग्यशाली होते हैं जिनके दोस्त बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक साथ रहते हैं । आज के इस आधुनिक युग में ऐसे दोस्त मिलना असंभव सा प्रतीत होता है । आजकल दोस्ती इंसान के व्यक्तित्व से नहीं उसके पद , प्रतिष्ठा और समाज में पैंठ से होती है । जिसको जिस से जितना फायदा मिलता है वह प्रतिष्ठित व्यक्ति का उतना ही घनिष्ट मित्र बन जाता है और दोस्ती निभाने के अनेक दावे करता है परंतु मतलब निकलने के बाद सारे दोस्ती के दावे धरे के धरे रह जाते हैं और दिल से सोचने वाले भावुक व्यक्ति अपना दिल दुखा बैठते हैं क्योंकि यह अपने भोलेपन में सामने वाले का दोस्ती का मुखौटा पहचान नहीं पाते । अधिकांश लोग आज अपना काम निकलवाने के लिए या समाज में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए किसी ऐसे व्यक्ति से दोस्ती करते हैं जिससे उन्हें यह सब प्राप्त हो जाए । आज किसी के कंधों पर पैर रखकर ऊपर चढ़ने वालों की संख्या काफी अधिक हो गई है । व्यक्ति किसी की सद्भावना और प्रेम को अनदेखा कर आगे बढ़ जाता है और मजे की बात यह है कि जिस के कंधों पर सवारी की जा रही हैं वह समझ ही नहीं पाता और खुशी – खुशी अपने दोस्त का सहारा बन जाता है । किसी ने क्या खूब कहा है ,
” मतलबी दुनिया का बस इतना फसाना है ,
आज तेरा दिन है तो तुझे अपना दोस्त बनाना है ।”
जब तक आप किसी के समक्ष रहते हो तब तक आपको पूछा जाता है यदि आप आंखों से ओझल हो जाओ तो आपके तथाकथित दोस्तों का रवैया भी बदल जाता है । यह आज का कटु सत्य है । दोस्ती एक प्यारा बंधन ना रहकर व्यापार बन गई है और हर व्यापारी खुद को सामने वाले से बड़ा बनाने की होड़ में लगा हुआ है । कोमल हृदय वाले लोग यह सत्य पचा नहीं पाते और इसी कशमकश में रहते हैं कि मैंने ऐसा क्या कर दिया , मुझसे क्या गलती हुई ! गलती उनकी नहीं , उनके प्रेम कि नहीं , उनके अपनत्व कि नहीं अपितु गलती है सामने वाले की जिसने उनका आत्मिक स्नेह नहीं देखा । देखा तो केवल अपना फायदा , अपना मतलब । भावुक लोगों से मैं इतना ही कहना चाहूंगी कि समय आ गया है कि हम खुद को बदलें वरना जिंदगी भर इस्तेमाल होकर फैंके जाएंगे ।

वर्तमान युग की कटु सच्चाई को सुंदर अभिव्यक्त किया है 👌🏼मुझें लगता है कि
दुनिया भावुक लोगों से ही चल रही है,उन्ही से
जीवन में सुंदरता और सजीवता बनी हुई है 😊👏👏💖
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परंतु सबसे ज्यादा कष्ट में भावुक लोग ही हैं ।
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आपकी यह बात बिल्कुल सही है 👌🏼😊
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खूब-खूब आभार आपका 🙏🙏
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